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Sunday 15 November 2015

ज़िन्दगी में है अंधेरा खो गयीं परछाईंयाँ





ज़िन्दगी में है अंधेरा खो गयीं परछाईंयाँ !
तेरे बिन डसने लगीं हैं मुझको ये तन्हाईयाँ !

दिल पे कैसे रख सकें क़ाबू सुहाना है समां !
हाय ये क़ाफ़िर अदा और तेरी अंगड़ाइयाँ !

तेरी चाहत तेरी नफ़रत दो रूखी तलवार हैं !
फूल जैसा तेरा चेहरा और नज़र में बर्छियाँ !

तेरे वादों के कफ़स में उम्र गुज़री है तमाम !
और हम भी तोड़ न पाये कफ़स की तीलियाँ !

तुम मुझे इस ख्वाब की ताबीर दे दो दोस्तों !
फूल पर बैठी हुयीं देखीं हैं हमने तितलियाँ !

क़ारवाने - ज़िन्दगी में सब क़नारा कर गये !
साथ है मेरे मग़र अब बस मेरी लाचारियाँ !

दर्दो-ग़म रंजो-अलम आँखों में आँसू दे दिये !
मैं गिनाऊँ किस तरह से ये तुम्हारी ख़ूबियाँ !

उनके चेहरे पर दिखे जब बे-वफाई के निशाँ !
ऐ"कशिश"हमने बड़ा लीं खुद ही उनसे दूरियॉँ !

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