ज़िन्दगी में है अंधेरा खो गयीं परछाईंयाँ !
तेरे बिन डसने लगीं हैं मुझको ये तन्हाईयाँ !
दिल पे कैसे रख सकें क़ाबू सुहाना है समां !
हाय ये क़ाफ़िर अदा और तेरी अंगड़ाइयाँ !
तेरी चाहत तेरी नफ़रत दो रूखी तलवार हैं !
फूल जैसा तेरा चेहरा और नज़र में बर्छियाँ !
तेरे वादों के कफ़स में उम्र गुज़री है तमाम !
और हम भी तोड़ न पाये कफ़स की तीलियाँ !
तुम मुझे इस ख्वाब की ताबीर दे दो दोस्तों !
फूल पर बैठी हुयीं देखीं हैं हमने तितलियाँ !
क़ारवाने - ज़िन्दगी में सब क़नारा कर गये !
साथ है मेरे मग़र अब बस मेरी लाचारियाँ !
दर्दो-ग़म रंजो-अलम आँखों में आँसू दे दिये !
मैं गिनाऊँ किस तरह से ये तुम्हारी ख़ूबियाँ !
उनके चेहरे पर दिखे जब बे-वफाई के निशाँ !
ऐ"कशिश"हमने बड़ा लीं खुद ही उनसे दूरियॉँ !
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