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Saturday 9 January 2016

थी अधूरी सी ग़ज़ल मैं गुम थे आखर...

थी अधूरी सी ग़ज़ल मैं गुम थे आखर
हो गयी पूरी तुम्हारा प्यार पाकर
थी ज़रा दूरी, तू जब था पास मेरे
कितना है तू पास, जाना दूर जाकर
सो न पाई बिन तुम्हारे कितनी रातें
तुमसे मिलकर भी गुज़ारी जग-जगाकर
खुद-ब-खुद ये पाँव कैसे दौड़ते हैं
लग रहा तुमने पुकारा गीत गाकर
है कशिश कितनी हमारी चाहतों में
अब मिलेंगे तुमसे, खुद को आजमाकर
वक़्त कम है पर मिलन की है खुशी भी
बह रहे हैं अश्क मेरे खिलखिलाकर
प्यार पर कितनी किताबें पढ़ चुके हम
पढ़ न पाए पर अभी तक ढाई आखर
आ मुझे बाँहों में भरकर चूम ले तू
कह रही है ज़िन्दगी ये मुस्कुराकर...!!

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