सब कुछ सह कर जीना था,
दुश्मन बड़ा कमीना था.
दर्द कर्बला जैसे थे,
और अहसास मदीना था.
पास मुक़द्दर था उसके,
मेरे पास पसीना था.
कह के पत्थर बेचे दिया,
और मैं एक नगीना था.
वक़्त ने शंकर कहा मुझे,
ज़हर मुझे तो पीना था.
सालों-साल के रिश्तों में,
मैं भी एक महीना था.
पढ़ता तो पढ़ता कैसे,
यार मेरा नाबीना था...
दुश्मन बड़ा कमीना था.
दर्द कर्बला जैसे थे,
और अहसास मदीना था.
पास मुक़द्दर था उसके,
मेरे पास पसीना था.
कह के पत्थर बेचे दिया,
और मैं एक नगीना था.
वक़्त ने शंकर कहा मुझे,
ज़हर मुझे तो पीना था.
सालों-साल के रिश्तों में,
मैं भी एक महीना था.
पढ़ता तो पढ़ता कैसे,
यार मेरा नाबीना था...
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