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Sunday 3 January 2016

ग़ज़ल गा रहे हैं सवेरे-सवेरे...

ग़ज़ल गए रहे हैं सवेरे-सवेरे
वो याद आ रहे हैं सवेरे-सवेरे
चलो उनपे शब का इजारा तो टूटा
ग़ज़ब ढा रहे हैं सवेरे-सवेरे
गुलों की न पूछो वो शबनम की सहबा
पिए जा रहे हैं सवेरे-सवेरे
उठाओ सबू हज़रते शेख देखो
इधर आ रहे हैं सवेरे-सवेरे
मैं हैरां हूं पागल हुए हैं पखेरू
हंसे जा रहे हैं सवेरे-सवेरे
ये बादल हैं या मेरी तौबा के दुश्मन
झुके जा रहे हैं सवेरे-सवेरे
ख़तरनाक है सोज़ की ये ग़ज़ल भी
ये उलझा रहे हैं सवेरे-सवेर...!!

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