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Sunday 3 January 2016

प्यासी रूह...

रूह कई जन्म से प्यासी है मेरी
दो दिन में प्यास तुम बुझा सकते नहीं
चाह है जिस आग की मुझे मेरे नदीम
वह आग तुम सीने में लगा सकते नहीं
बुध औ ईसा जिस राह पर गए हैं गुज़र
उस राह पर तुम मुझको ला सकते नहीं
अज़ल से इश्क की शमा जो रौशन है
अबद तक तुम उस को बुझा सकते नहीं
मैं वह 'बेताब' शरर हूं बिछड़ा हुआ
उस शोले से तुम मुझको मिला सकते नहीं...!!

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