रात भर किस ने मेरे दिल में अज़ादारी की
मेरी आँखों ने जो अश्कों की नदी जारी की
ईद के दिन भी उसे काम से छुट्टी ना मिली
मुफ़लिस-ए-शहर ने कब ईद की तैयारी की
...
मेरी आँखों ने जो अश्कों की नदी जारी की
ईद के दिन भी उसे काम से छुट्टी ना मिली
मुफ़लिस-ए-शहर ने कब ईद की तैयारी की
...
सब के सब कहते हैं किरदार अमर है मेरा
पर्दा-ए-ज़ीस्त पे यूँ मैंने अदाकारी की
मेरी आँखों के चिराग़ों को बुझा दे कोई
मैंने ता उम्र उजालों की तरफदारी की
मैं किसी और से उम्मीदे वफ़ा क्या रखता
मेरे अपनों ने कहाँ मुझ से वफादारी की
यह ज़माना मुझे कर देता फरामोश मगर
मेरी ग़ज़लों ने मेरे फन की अलमदारी की...
पर्दा-ए-ज़ीस्त पे यूँ मैंने अदाकारी की
मेरी आँखों के चिराग़ों को बुझा दे कोई
मैंने ता उम्र उजालों की तरफदारी की
मैं किसी और से उम्मीदे वफ़ा क्या रखता
मेरे अपनों ने कहाँ मुझ से वफादारी की
यह ज़माना मुझे कर देता फरामोश मगर
मेरी ग़ज़लों ने मेरे फन की अलमदारी की...
No comments:
Post a Comment