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Thursday 12 May 2016

ग़ज़ल

खिले हैं फूल गुलशन में ,चहकने को महकने को
चले आओ यहाँ पर तुम ,मेरे हमदम सँवरने को
मिलेंगे राह में कांटे ज़रा चलना संभल कर तुम
बड़े बेचैन रहते ये सदा पैरों में चुभने को
हमें जब भी पुकारोगे ,सदा ही पास पाओगे
बिना देरी किये इक पल ,मिलेंगे साथ चलने को
खड़ी करते यहाँ पर लोग पग पग पर दिवारें भी
नहीं देते कभी मौका यहाँ से बच निकलने को
कलम कहती सदा "संजय" ,चलूंगी साथ तेरे ही
कहेगा जो लिखूंगी मैं ,नहीं मंजूर बिकने को

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