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Monday 4 January 2016

दु:ख अपना अगर हमको बताना नहीं आता...

दु:ख अपना अगर हमको बताना नहीं आता,
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता ।
पहुंचा है बुजुर्गों के बयानों से जो हम तक,
क्या बात हुई, क्यों वो ज़माना नहीं आता ।
मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया,
उसको भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता ।
इस छोटे से ज़माने के बड़े कैसे बनोगे,
लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता ।
ढूंढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने,
आंसू को मेरी आँख में आना नहीं आता ।
तारीख़ की आँखों में धुआं हो गए ख़ुद ही,
तुम को तो कोई घर भी जलाना नहीं आता...!!

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