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Tuesday, 17 November 2015

सबको देती प्यार है माँ

सबको देती प्यार है माँ
इक अक्षर का नाम है माँ
ईश्वर खुद भी चरण पखारे
राम,रहीम,रहमान है माँ.
...
महिमा जिसकी गा नही सकते
इतना ऊँचा नाम है माँ
क्यूँ जाऊँ मै मंदिर मस्जिद
मेरे चारो धाम है मँ
होती मेरी सुबह कहीं भी
लेकिन मेरी शाम है माँ
खुद को तो ये भूल गई है
करती कितने काम है माँ
नशा प्रेम का घोले सब में
एक अनोखा जाम है माँ
कोई मुझे खरीदे कैसे
खुद मेरा जब दाम है माँ
अच्छाई की मूरत है यह
निष्छल और निष्काम है माँ

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