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Thursday, 12 May 2016

ग़ज़ल

खिले हैं फूल गुलशन में ,चहकने को महकने को
चले आओ यहाँ पर तुम ,मेरे हमदम सँवरने को
मिलेंगे राह में कांटे ज़रा चलना संभल कर तुम
बड़े बेचैन रहते ये सदा पैरों में चुभने को
हमें जब भी पुकारोगे ,सदा ही पास पाओगे
बिना देरी किये इक पल ,मिलेंगे साथ चलने को
खड़ी करते यहाँ पर लोग पग पग पर दिवारें भी
नहीं देते कभी मौका यहाँ से बच निकलने को
कलम कहती सदा "संजय" ,चलूंगी साथ तेरे ही
कहेगा जो लिखूंगी मैं ,नहीं मंजूर बिकने को

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं..!!

हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए हैं
ज़िंदा तो है जीने की अदा भूल गए हैं
ख़ुशबू जो लुटाती है मसलते हैं उसी को
एहसान का बदला यही मिलता है कली को
एहसान तो लेते है, सिला भूल गए हैं
करते है मोहब्बत का और एहसान का सौदा
मतलब के लिए करते है ईमान का सौदा
डर मौत का और ख़ौफ़-ऐ-ख़ुदा भूल गए हैं
अब मोम पिघल कर कोई पत्थर नही होता
अब कोई भी क़ुर्बान किसी पर नही होता
यूँ भटकते है मंज़िल का पता भूल गए हैं

ग़म-ए-उल्फ़त के किस्से हर जगह गाये नहीं जाते...


ग़म-ए-उल्फ़त के किस्से हर जगह गाये नहीं जाते।
ये वो दौलत है जिसके जौहरी पाये नहीं जाते।।
मेरे ख़ामोश लब , आंखों के आंसू कुछ न बोलेंगे,
ये दिल के ज़ख़्म हैं साहब जो दिखलाये नहीं जाते।
मोहब्बत में मिले ग़म भी बड़े अनमोल होते हैं,
ये तोहफ़े हैं जवानी के जो ठुकराये नहीं जाते।
ग़मों से दोस्ताना है मेरी ग़ज़लों का मुद्दत से,
मैं कोशिश कर चुका हूँ दर्द के साये नहीं जाते।
मची है होड़ सी देखो मकाम -ए-अर्श पाने की,
शहर में नींव के पत्थर कहीं पाये नहीं जाते।
अग़र यह दिल बग़ावत पर उतर आया तो क्या होगा,
किसी भी शख्स पर इतने सितम ढाये नहीं जाते।
ग़मों ने चीज़ को 'नाचीज़' कर डाला मोहब्बत में,
गुज़ारे यूँ कई लम्हे कि बतलाये नहीं जाते।

Saturday, 9 January 2016

थी अधूरी सी ग़ज़ल मैं गुम थे आखर...

थी अधूरी सी ग़ज़ल मैं गुम थे आखर
हो गयी पूरी तुम्हारा प्यार पाकर
थी ज़रा दूरी, तू जब था पास मेरे
कितना है तू पास, जाना दूर जाकर
सो न पाई बिन तुम्हारे कितनी रातें
तुमसे मिलकर भी गुज़ारी जग-जगाकर
खुद-ब-खुद ये पाँव कैसे दौड़ते हैं
लग रहा तुमने पुकारा गीत गाकर
है कशिश कितनी हमारी चाहतों में
अब मिलेंगे तुमसे, खुद को आजमाकर
वक़्त कम है पर मिलन की है खुशी भी
बह रहे हैं अश्क मेरे खिलखिलाकर
प्यार पर कितनी किताबें पढ़ चुके हम
पढ़ न पाए पर अभी तक ढाई आखर
आ मुझे बाँहों में भरकर चूम ले तू
कह रही है ज़िन्दगी ये मुस्कुराकर...!!

Friday, 8 January 2016

आँखों..

आँखों को रोने का बहाना चाहिये दिल को दर्द सँभालने का ठिकाना चाहिये,
 मैं तो तोड़ देता हूं रोज वादे करके लेकिन तुम्है तो वादा निभाना चाहिये...

Thursday, 7 January 2016

ना हो ग़र आशना नहीं होता...

ना हो ग़र आशना नहीं होता
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता
तुम भी उस वक़्त याद आते हो
जब कोई आसरा नहीं होता
दिल में कितना सुक़ून होता है
जब कोई मुद्दआ नहीं होता
हो न जब तक शिकार-ए-नाकामी
आदमी काम का नहीं होता
ज़िन्दगी थी शबाब तक 'सीमाब'
अब कोई सानेहा नहीं होता..!!